Tuesday, January 31, 2012

अद्भुत टोटका तंत्र (AMAZING TOTKA TANTRA)

पंच तत्व अपने आप मे ही महत्वपूर्ण है और यह हमारे आसपास किसी न किसी रूप मे होते ही है. अतः इन तत्वों की अवलेहना भी कई बार विविध स्वास्थ्य सबंधी तथा लक्ष्मी सबंधी समस्याओ को आमंत्रण देता है. अक्सर व्यक्ति छोटी चीजों को भूल कर विविध बड़े बड़े अनुष्ठान करवाने के लिए तैयार हो जाता है. लेकिन अगर व्यक्ति छोटी छोटी चीजों पर ही ध्यान देना शुरू कर दे, तो बड़ी समस्या की पृष्ठभूमि ही नहीं बनेगी. हमारे वेदों ने जब इन तत्वों को देवताओं की संज्ञा दी है तब इनका किसी भी रूप मे अपमान योग्य नहीं है. निचे विविध ग्रंथो से संगृहीत तत्वों से सबंधित कुछ टोटके प्रस्तुत किये जा रहे है.
·       घर मे तुलसी का और यथा संभव किसी भी प्रकार का पौधा सुख जाए तो उसे घर मे नहीं रखना चाहिए, यह भूमि तत्व से सबंधित दोष है. इससे घर मे लक्ष्मी तथा स्वस्थ सबंधित समस्याए बढती है. इस प्रकार जब कोई पौधा घर मे सुख जाए तो उसे अपनी मिटटी के साथ ही नदी या समुद्र मे प्रवाहित कर दे.
·       अपने घर के मुख्य द्वार के पास स्थिर पानी नहीं रखना चाहिए. यथा संभव मुख्य द्वार के सामने बहार की तरफ भरा हुआ जल स्त्रोत ठीक नहीं है. इससे भी साधक लक्ष्मी से सबंधित समस्याओ से पीड़ित रह सकता है. इसके निवारण हेतु साधक को अपने दरवाज़े पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए
·       घर मे जहा पर भी पानी लीक हो रहा हो उसे तुरंत ठीक करवा लेना चाहिए. घर मे पानी का टपकता रहना योग्य नहीं कहा जाता तथा ऐसे घर के सभ्यो मे मानसिक रोग की सम्भावना बढ़ जाती है.
·       मंदिर की ध्वजा की परछाई अगर किसी घर पर पड़ती हो तो वहा पर पृथ्वी दोष लगता है ऐसा विवरण कई ग्रंथो मे है, ऐसे घर मे रहने वाले व्यक्ति किसी न किसी रूप मे रोग के शिकार होते रहते है. व्यक्ति को अपने घर मे क्षेत्रपाल की स्थापना कर रोज गुड का भोग लगाना चाहिए
·       स्मशान के पास गृह होने पर घर के अंदर से जलती हुई चिता को देखने से अग्नि तत्व से सबंधित दोष लगता है. इसके निवारण हेतु साधक को ३ अंजुली जल सूर्य को या तुलसी को चडा कर अग्नि देव से माफ़ी मांगे तथा मृत आत्माओ की मुक्ति के लिए प्रार्थना करे
·       सूर्य को सूर्योदय के समय अर्ध्य देना अत्यधिक उत्तम होता है. उस समय “ औम घृणी सूर्य आदित्याय सर्व दोष निवारणाय नमः” का ११ बार उच्चारण करने से सभी दोषों से मुक्ति मिलती है
·       संध्या काल मे साधक अगर निर्जन वातावरण मे ५ अगरबत्ती पंच तत्वों को याद कर के लगा दे तथा पूर्वजो को मदद के लिए प्रार्थना करे तो सर्व लक्ष्मी तथा स्वास्थ्य सबंधित दोषों की निवृति होती है
·       सूर्यास्त के समय अपने जल संग्रह स्थान के पास एक दीप जलने पर आकाश तथा जल स्वास्थ्य सबंधित सर्व दोषों की निवृति होती है
·       लक्ष्मी सबंधित गेबी मदद प्राप्त करने के लिए कोई कुवां खोजे और सूर्यास्त मे उसमे से जल निकाले, रात्रि काल मे उस जल से वही पर नग्न हो कर स्नान करे. इसके बाद किसी दरगाह या मज़ार पर मिठाई का भोग लगा कर एक हरा धागा वहा से उठा ले. उस धागे पर “अल्लाहु मदद” का ८८ बार जाप कर के किसी तावीज़ मे भर कर हाथ या गले मे पहेन ले. और रोज “अल्लाहु मदद” का यथा संभव जाप करे. एक हफ्ते की भीतर मदद प्राप्त होती है. एक हफ्ते बाद तावीज़ को उसी मजार पर चडा दे. जल कुवे का ही होना चाहिए और स्नान वही पर करना है.
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Five basic elements are very important and they all are present nearby us in one or another form. Therefore sometimes avoiding or neglecting these elements could bring various problems related to health and wealth.  Manytime person forgets small things and go for big anusthana. But if one takes care in small trouble, there would be no base to develop big incidents. When our Vedas had given these elements a name of Gods then their insult in any form would never be accepted. Following are the Totka related to these five elements collected from various scriptures.
·       There should not be basil plant or possibly anyother plant which is dried inside the house, this is dosha related to Bhoomi tatva. With such thing problems related to health and money will be increase. Such plants when gets dry, should be immersed in river or ocean with mud of it.
·       One should avoid possible stagnant water near main door of the house. Possibly one should avoid stagnant water filled especially in exact front of the house. With this person may suffer from the wealth related problems. As a solution, sadhak should make sign of “swastika” on the main door.
·       Wherever there is water dripping problem, one should repair it as soon as possible. Dripping water is not good for house and such house members may suffer from the mental disorders.
·       If shadow of the any temple’s flag take place on the house of any one, this is prithvi dosh such mention could be found in many tantra scirptures, people living in such houses could also suffer from health related issues in one or another form. Person should establish ‘kshetrapaal’ in the worship place of house and should daily offer jaggery to him as a solution.
·       If house is near Seminary ground, one should not look at any death body burning from inside the house, this cause dosha of Agni Tatva. For the solution of this, sadhak should offer 3 times water to the Sun or basil plant and should also apologies lord Agni or fire and pray for the freedom of spirits of deaths.
·       It is always better to offer water to sun on the time of sun rise. That time if one chants “ Aum Ghruni Sury Aadityaay Sarv Dosh Nivaaranaay Namah” 11 times may gets freedom from every dosha.
·       If 5 incent sticks are lighted at the place where there is no humans by remembering 5 basic metals and if prayed to the Ancestor then all the dosha related to health and wealth does receives the solutions.
·       At the time of sunset if one lights a lamp at the place where water is kept in the house all the dosha related to aakash and Jal tatva gets solution
·       To have the divine help related to wealth one should search for a water-well. At the time of sun set one should take out water from it and at the night time one should bathe there with the same water by being fully naked. After that one should offer some sweets at mosque and get green thread from the same place. One should chant “Allaahu Madad” 88 times on that thread and then should be tied in neck or arm by putting it in taawiz. After that one should chant “allaahu Madad” as much possible daily. One will receive divine help in just 1 week. After 1 week that tawiz should be placed on the same mosque. Condition is Water should be only of water-well and one need to have bath at same place.

   


                                                                                               
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भगवान राम बिम्बात्मक दर्शन और एकीकरण साधना(BHAGWAN RAAM BIMBATMAK DARSHAN AUR EKIKARAN SADHNA)


रामादली सम्प्रदाय के बारे मे पहले ही साधूसाही के अंतर्गत परिचय दे दिया गया है. इस सम्प्रदाय की  साधना गुप्त रूप से चलती है तथा विधान को गुप्त रखा गया है. भगवान राम से सबंधित साधनाए इसी लिए ज्यादातर उपलब्ध नहीं हो पाती है. इन साधनाओ मे श्रद्धा की खास आवश्यता होती है. साधक के लिए इसमें इष्ट से एकीकरण की भावना विशेष रूप से होनी चाहिए. भगवान राम की साधना भी अपने आप मे उच्चकोटि की है. वस्तुतः यह भगवान विष्णु के अवतार रहे है. हनुमान उपासको के लिए तो यह साधना वरदान स्वरुप ही है. क्यों की हनुमान साधना से पहले श्री राम सबंधित साधना करने पर भगवान हनुमान साधक पर प्रस्सन होते है. इस प्रकार कई द्रष्टिओ मे यह साधना उपयोगी है. जीवन मे आध्यात्मिक वृति लेन के लिए भी यह साधना सम्प्पन करनी चाहिए.

जिनके इष्ट राम है उनके लिए एक ऐसा ही विधान यहाँ पर दिया जा रहा है. यह पूर्ण रूप से सात्विक विधान है.

इसमें साधक को निम्न मंत्र की ५१ माला ११ दीन तक करनी चाहिए.

यह जाप तुलसी की माला से हो.

दिशा उत्तर या पूर्व हो

साधक सफ़ेद सूती वस्त्र तथा आसान का प्रयोग करे

साधक को यह साधना एसी जगह पर करनी चाहिए जहा पर साधना काल मे कोई और व्यक्ति प्रवेश न करे.

इस प्रयोग के साथ ही साथ साधक हनुमान का भी यथा योग्य ध्यान जाप पूजा करे तो उत्तम है.

इस साधना मे साधक को भूमिशयन, ब्रम्हचर्य का पालन, संभव हो उतना मौन तथा एक समय सात्विक भोजन का पालन करना चाहिए. इस साधना को किसी भी शुभ दिन से शुरू की जा सकती है. समय रात्रि मे १० बजे के बाद का रहे तथा साधक राम चिंतन मे ही लिन रहे. श्रद्धा और विश्वास के साथ की गई साधना मे साधक को अंतिम दिन भगवान श्री राम के बिम्बात्मक दर्शन होते है तथा मनोकामना पूर्ण होती है.

रां रामाय दर्शयामि नमः
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Introduction about raamadali sampraday has already given under the titles of saadhusaahi. The sadhana of this sect continues secretly and the process is also kept secret. For the same reason, sadhana related to lord Rama is not easily available. In these sadhana, basic need is your faith. For sadhak it is essential to have feeling of merging with god for sadhak in such sadhana. sadhana of god Rama is also of higher level. He is form of lord Vishnu. This sadhana is also act bliss for hanuman devotee. Because before accomplishing hanuman sadhana if sadhak does raam sadhana then lord hanuman pleases with sadhak. This way, the sadhana of Rama is important in many ways. To active our inner spiritual side one should also attempt this sadhana.
Here process is given for those who have God Rama as their isht. This is completely saatvik process.

In this sadhak is requires to chant 51 rounds of the following mantra for 11 days.

 This chanting should be done with basil rosary (Tulasi Mala)

Direction should north or east

Sadhak should use white cotton cloth and aasan for this prayoga

Sadhak should do this sadhana at the place where during sadhana time period other person do not enter.

It is better if sadhak does hanuman meditation, chantings and poojan as much possible with this prayog.


In this sadhana sadhak should follow rules of sleeping on the floor, bramhacharya, possible least speaking and one time satvik food. This sadhana could be started on any auspicious day. Time should be after 10 PM in night and sadhak should keep on staying in rama’s thinking. Sadhana done with faith and devotion will give sadhak boon of having glimpses of god Ram in his bimba form on the last night and wishes are fulfilled.

Raam Raamaay Darshayaami Namah
   


                                                                                               
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Monday, January 30, 2012

पूर्ण शक्तिपात सिद्धि साधना (Poorna Shaktipaat Siddhi sadhna) –


जब शिष्य जिज्ञासु बनकर अपने अज्ञान की निवृत्ति हेतु श्री सद्गुरु के चरणों में निवेदन ज्ञापित करता है , तब उसके निवेदन को स्वीकार कर अज्ञान रुपी अन्धकार का नाश करने के लिए सद्गुरु उसे ज्ञान का उपदेश देते हैं l वस्तुतः ये ज्ञान कभी सामान्य होता ही नहीं है ,क्योंकि ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही मनुष्य अपने कर्म फलों को नष्ट करने का भाव और पराक्रम प्राप्त कर पाता है ,ज्ञानाग्नि ही प्रदीप्त होकर शिष्य के लिए शक्तिपात की भूमि तैयार करती है lइसे यो समझा जा सकता है की किसान को बीजारोपण के पूर्व भूमि की उर्वरा क्षमता बढ़ाने के लिए भूमि को जोतना पड़ता है lतत्पश्चात ही बीज का अंकुरण हो पाता हैl ठीक वैसे ही बीज में छुपा हुआ ज्ञान का वृक्ष जो आचार विचार में पूर्ण प्रभाव के साथ हमारे व्यक्तित्व में ही आ जाये l सद्गुरु अपने तपः उर्जा के द्वारा अपने संचयित ब्रम्हांडीय ज्ञान को शिष्य में अपनी करुणा के वशीभूत होकर उड़ेल देते हैं, अर्थात बीज रोपण कर देते हैं,जिसके बाद शिष्य मात्र मन्त्र जप का आश्रय लेता है और उसे निर्दिष्ट या अभीष्ट ज्ञान की प्राप्ति होते जाती है l
 शक्तिपात के तीन प्रकार होते हैं-
मंद
मध्यम
तीव्र
   इनके नाम पर जाने की कदापि आवशयकता नहीं है (क्यूंकि इन भेदों के भी ३-३ उपभेद हैं, और जिनकी चर्चा करना यहाँ हमारा वर्तमानिक उद्देश्य तो कदापि नहीं है, वो गूढ़ चर्चा फिर कभी और करेंगे),अपितु ये समझना कही ज्यादा महत्वपूर्ण होगा की शक्तिपात कर्मफल रुपी मल को हटाकर ज्ञान का बीजारोपण करने की क्रिया है l अर्थात हमारे कर्मों का जितना गहरा प्रभाव आवरण बनकर हमारे चित्त या आत्मा पर होता है सद्गुरु को उतनी ही तीव्रता का प्रयोग करना पड़ता है ,दोष निवारण हेतु उतना अधिक अपना तप प्रयोग करना पड़ता हैl
और ये क्रिया तब तो अवश्यम्भावी हो ही जाती है ,जब शिष्य गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञानवाणी के भावार्थ को नहीं समझ पा रहा हो और उसका मन संशय से मुक्त नहीं हो रहा हो l तब ऐसे में समर्थ गुरु अपने ज्ञान को सीधे ही अपनी दृष्टि,वाणी या स्पर्श द्वारा शिष्य के भीतर उतर देते हैं जिससे कर्म फल के परिणाम स्वरुप बाह्य नेत्रो और बहिर्मन के ऊपर पड़ी अज्ञान की पट्टी भस्मीभूत हो जाती है ,और उसका साक्षात्कार उस सत्य से हो जाता है, जो सत्य सद्गुरु द्वारा दिग्दर्शन कराया जा रहा होl आज हम श्री मद भागवद गीता को कर्म की और प्रेरित करने वाला ग्रन्थ मानते हैं, परन्तु उसे पूरा सुनने के बाद भी क्या अर्जुन उसका भावार्थ समझ पाया ? क्या वो युद्ध के लिए तत्पर हो पाया? नहीं क्योंकि उसे तब ये ज्ञान नहीं था की जो सामने रथ पर खड़े हैं वो सामान्य सारथि या मित्र ही नहीं हैं अपितु ऐसे जगद्गुरु हैं जिनकी वंदना सम्पूर्ण ब्रम्हांड करता हैl उसे गीता के उन दिव्य वाक्यों में छुपे अर्थ समझ ही नहीं आ रहे थे l वस्तुतः जितने भी शास्त्र या तंत्र ग्रन्थ रचे गए हैं वे तीन ही प्रकार के श्लोकों में रचे जाते हैंl
अभिधा
लक्षणा
व्यंजना
और सामान्य साधक या शिष्य के लिए इन श्लोकों के मर्म को समझना अत्यधिक दुष्कर है l तब अर्जुन भी इस मर्म को नहीं समझ पा रहे थे और तब कोई और चारा न देख कर कृष्ण जी को शक्तिपात की क्रिया करनी ही पड़ी और जो बाते लगातार समझाने के बाद ह्रदय में नहीं उतर पा रही थी वो शक्तिपात से सहज ही संपन्न हो गयीl उसके बाद जो हुआ वो हम सभी जानते ही हैं l
   पर क्या मात्र शक्तिपात होने से ही साधक का अभीष्ट प्राप्त हो जाता है  , नहीं वस्तुतः शक्तिपात की प्राप्ति के बाद भी साधक का जीवन पवित्रता युक्त नहीं होता है और वो नित्य प्रति की जिंदगी में मिथ्याचार, अशुद्ध भोजन और मलिन भाव से युक्त होता ही है और तब ऐसे में सद्गुरु ने  जो शक्तिपात आपको प्रदान किया है वो आपके कर्मों के कारण क्षीण होते जाता है ,जैसे मिटटी के मटके में असंख्य महीन छिद्र होते हैं और जब हम उसे जल से पूरित कर देते हैं तो थोड़े समय बाद वो मटका धीरे धीरे रिक्त होते जाता है l अर्थात उसमे जल लगातार नहीं पड़ेगा तो एक समय बाद वो पूरी तरह सूख ही जायेगा l साधक को भी शक्तिपात की प्राप्ति के बाद संयमित जीवन और साधना का नित्य प्रति सहारा लेना पड़ता है यदि वो ऐसा नहीं करता है तो ऐसे में उसे प्राप्त शक्तिपात भी धीरे धीरे सुप्त हो जाता है l और ये भी सत्य है की हम पर शक्तिपात की प्रक्रिया ब्रम्हांडीय शक्तियों द्वारा सृष्टि के आरंभ से ही हो रही है और आज भी होती है परन्तु ये इतनी मंद और सूक्ष्म होती है की हमें इसका अनुभव किंचित मात्र भी नहीं हो पाता हैl इसलिए यदि शक्तिपात के प्रभाव को निरंतर शरीर और आत्मा में संजो कर रखना है तो सदगुरुदेव प्रदत्त शक्तिपात सिद्धि साधना संपन्न करनी ही पड़ेगी lइसके बाद आप उन सभी शक्तिपात के प्रभाव को आत्मस्थित कर पाएंगे जो पूर्व में आप पर हुए हैं या नित्य प्रति सिद्धाश्रम के महायोगियों द्वारा हम पर सूक्ष्म रूप से किये जाते हैं l ये एक अद्भुत और गोपनीय विधान है , जो सहज प्राप्य नहीं है l   
किसी भी सोमवार से इस साधना को ब्रह्म मुहूर्त में प्रारंभ किया जा सकता है lवस्त्र व आसन श्वेत होंगे ,पूर्ण शुद्ध होकर आसन पर बैठ जाये और सामने बाजोट रखकर उस पर रेशमी सफ़ेद वस्त्र बिछाकर उस पर अष्टगंध से निम्नाकित यंत्र उत्कीर्ण करके उस यंत्र के मध्य में अक्षत की ढेरी बनाकर उस पर घृत का दीपक स्थापित करे, तथा यन्त्र के पीछे गुरु चित्र तथा यन्त्र के सामने गुरु पादुका या गुरु यन्त्र स्थापित करे l तत्पश्चातहाथ में जल लेकर सदगुरुदेव से प्रार्थना करे की “हे सदगुरुदेव पूर्व जीवन से वर्तमान तक जिस भी दीक्षा शक्ति का आपने मुझमे संचार किया है,वे सदैव सदैव के लिए मुझमे अक्षुण हो सके इस निमित्त मैं ये दुर्लभ साधना कर रहा हूँ,आप अपनी अनुमति और आशीर्वाद प्रदान करें” तथा गुरु चित्र और यदि गुरु पादुका या गुरु यन्त्र हो तो उन का दैनिक साधना विधि में दिए गए विधान अनुसार (या पंचोपचार विधि से ) गुरु पूजन करे lपंचोपचार पूजन के विषय में पूर्व अंकों में बताया जा चूका है l इसके बाद  नवीन स्फटिक माला से १६ माला गुरु मंत्र की तथा २४ माला पूर्ण शक्तिपात सिद्धि मंत्र की जप करेl
पूर्ण शक्तिपात सिद्धि मंत्र
ॐऐं ह्रीं क्लीं क्रीं क्रीं हुं जाग्रय स्फोटय स्फोटय फट् ll   
ये क्रम सात दिन का है,दीपक मात्र साधना काल में ही जले ,अखंड रखने की अनिवार्यता नहीं है, साधना के सभी सामान्य नियमों को अवश्य अपनाएं lअंतिम दिन जप के पश्चात उस माला को ४० दिनों तक पूजा के समय धारण करे और बाद में उसे पूजन स्थल पर ही रख दे lसाधना काल के मध्य शरीर में तीव्र दाह उत्पन्न हो जाता है, गर्मी बढते जाती है अतः दुग्ध पान अधिक मात्र में करे, शरीर टूटता रहता है क्यूंकि आत्म रूप से व्याप्त शक्तिपात की तीव्र ऊर्जा रोम रोम में प्रसारित होते जाती है,चेहरे पर लालिमा और नेत्रों में आकर्षण व्याप्त हो जाता है l आप स्वयं ही इस अद्भुत मन्त्र के प्रभाव को देख पाएंगे, जरुरत है मात्र पूर्ण श्रृद्धा के साथ मन्त्र को अपने जीवन में स्थान देने की बाकि का काम तो स्वतः होते जायेगा l
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    When Disciple became curious to release his lack of knowledge state and requests to sadgurudev, then his requests is been listen and Sadguru proceed some thought processing to vanish his lack of knowledge. Actually this knowledge is never been casual to any one, because after achieving any type of knowledge he actually gets the notion of destroying it. Knowledge fire zeal only prepares the base for shaktipaat procedure. This can be understood by this way – if any farmer sows seeds in farms, but before sowing, first he cultivate and plough the land. There after he starts the sowing of seeds later which converts into huge trees. The hidden form of knowledge in seed became in future tree. Exactly same case with us whatever seeds inside us is cultivated by Sadguru and ultimate after his hard efforts we became tree. By Sadguru’s meditational powers and energy the universal knowledge get established in us. This all happens just because of his infinite endless love and kindliness for us in his heart. This means he sows the seed, where after sheer support of mantra jap shishya get success in his wishes.
The Shaktipaat are of 3 types :-
Mand
Madhyam
Teevra
Don’t go by the sheer name of it. (Because there are 6-6 sub secrets of it, as of now whose discussion is not in intended. That secret discussion might be taken some other time) rather it’s more important to understand that Shaktipaat is that process which helps to excrete the filthy thoughts in us and cultivates the seeds by sowing in us to enlighten the light of purity. It means as much dark and strong layer of our past life impacts had been engrossed in our mind that much powerful process have been used to remove the effects by sadguru which is possible only by transferring his hard meditational power and energy via Shaktipaat.
And this becomes so important when Shishya is enabling to understand the knowledge is given by Sadguru and his mind is not free from suspiciousness. In that case capable guru directly transfers the light of knowledge by eyesight, speech or by touch, in resultant the filthy layer of external eyes and mind gets disappeared and then he has been acquainted with the ultimate truth of life which is again lead by Sadguru. Today we considered the holy book ShrimadBhagwat Gita as most inspirational book but after listening completely, still the question remains as it is that does Arjun understood it properly?  Does he become instant ready to face the war? Answer is NO because at that time he was not having the light of knowledge is not just his driver or friend but also mentor of the world who is worshipped by whole world. Arun didn’t understand the hidden divine sentences meaning of Gita. Basically however the Shastras and Tantra Granthas had been written and expressed in three forms of Shlokaas –

Abheedaa
Lakshanaa
Vyanjanaa
   
And for normal Sadhak this is quiet difficult to understand the depth of these shlokas. At that time even Arjun was also not able to understand it amd no other solution left apart giving Shaktipaat remained with Shree Krishna. The talks which Arjun was not able to get since long and lots of efforts, mere by shaktipaat he embibed it instantly so easily smoothly. Thenafter whatever happened we are welaware about it.
 Is shaktipaat is sufficient for a sadhak to realise his wishes, Answer is 'No' even after having shaktipaat diksha the sadhak's life doesnt remain pure. In his daily routine life he is full of falsehood, impure food and dirty notions and in such condition the shaktipaat energy given by Sadguru reduces day by day. This reduces only becase of our Karmas, likewise in mud pot there are infinite minute wholes which are not seen by lamed eyes. When we fill it with water but after some time the water level gets on reducing manner and ultimate it again becomes empty. It means time on time if we doesn’t fill with water then it would get dry. For keeping it wet the water supply shouldn’t be stop. After getting Shaktipaat Sadhak should lead his life very carefully and support of sadhna is must. And if he doesn’t do sadhna, slowly slowly the shaktipaat energy disappears. And this is also a truth, the shaktipaat process by universal power holders is already been started from beginning and at today’s date too but it is quite slow and minute that we don’t realize it. Therefore if you want to conserve the impact of shaktipaat in you, then the Shaktipaat Siddhi Saadhna is the only solution. Then only you can imbibe the impacts which have been done in past and also at present done by Siddhaashram’s Mahayogis upon you. This is a wonderful and secret process which really rare.
On any Monday you can start with this sadhna in Bramha mahurt (early morning auspicious time) Cloths and asana should be white in color. Clean and bath yourself and then be seated, establish the ashtagandha yukta yantra on small table covered with white cloth. Put some rice in middle of it and then light the butter lamp. Place Sadguru picture behind the yantra and place the Guru paduka and guru yantra before the small table. Then take some water in palm and pray to Sadgurudev “
Oh my revered Sadgurudevji with due respect I would like to say something, since first birth to this birth, whichever dikshas you have transmitted in me, it should get resume in me forever for that purpose I’m pursuing this sadhna. I just want your permission and blessings”. Then as per instruction do worship guru paduka, guru pujan as u do on daily basis. About Panchopchaar Pujan process already been told in previous article. Then with New Crystal Rosary (Navin Sphatik Mala) do 16 rosaries gurumantra and 24 rosaries Poorna Shaktipaat Siddhi Mantra jap.
Poorna Shaktipaat Siddhi Mantra

Om aim hreem kleem kreem kreem hoom jaagray sfotay sfotay fatt.

This should be done for seven consecutive days, Light the lamp in sadhna period only. Not needed on continuity (Akhand) follow all general instruction same as any sadhna. On last day after chanting wear that rosary for 40 days while worshipping time and after place it again at puja place. Repeat it every day till 40 days. While in sadhna period sudden hotness would arise in body, body heat would increase so increase your milk intake. Body pain will be there as the astral form of Shaktipaat’s sharp energy flows drastically in each cell of our body. Facial glow would increase day by day. Eyes would become more attractive and effective. You only can experience the after effects of this sadhna. What needed is complete belief on sadhna in personal life rest things are automatically managed for you
   
   
                                                                                               
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Sunday, January 29, 2012

VEERBHADR TANTROKT SARVESHVARI SADHNA(वीरभद्र तंत्रोक्त सर्वेश्वरी साधना)


वीरभद्रतन्त्रं अपने आप मे गोपनीय साधनाओ का संग्रह है, यह गुप्त ग्रन्थ मे अनेको साधना रहस्य दिये गए है जो की अपने आप मे सरल तथा प्रामाणिक है. एक समय पर यह बहोत ही बड़ा तन्त्र साहित्य ग्रन्थ हुआ करता था लेकिन इसके कई भाग काल क्रम मे लुप्तता को प्राप्त हो गए. खेर, इस ग्रन्थ मे कई देवी देवताओ की साधना विधियां स्पष्ट की गई है जिसमे मारण, वशीकरण, आकर्षण, मोहन और कार्य सिद्धि से सबंधित प्रयोग निहित है. प्रस्तुत प्रयोग ग्रन्थ का एक कीमती रत्न है. यह सर्वेश्वरी साधना है. इस साधना का मंत्र स्वयं सिद्ध है इस लिए सफलता की संभावना ज्यादा है. साथ हि साथ इस मंत्र की एक और खासियत यह है की व्यक्ति इसमें साधना क्रम का चुनाव खुद कर सकता है तथा अपने मनोकुल परिणाम के लिए प्रयत्न कर सकता है. इस प्रकार तंत्र के क्षेत्र मे यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और गोपनीय प्रयोग है.

इस साधना को करने के लिए साधक किसी ऐसे स्थान का चयन करे जहा पर उसे साधना के समय पर कोई भी व्यव्घान न आए. साधक को प्रयोग मंगल वार रात्री से शुरू करना चाहिए. माला रुद्राक्ष की रहे तथा वस्त्र और आसान लाल. दिशा उत्तर रहे. साधक निम्न रूप से इस मंत्र के विविध प्रयोग कर सकता है. मंत्र के सबंध मे विवरण जिस प्रकार से दिया गया है वह इस प्रकार है.

१)   इस मंत्र के स्मरण मात्र से सर्व भूत राक्षस दुष्ट हिंसक पशु डाकिनी योगिनी इत्यादि सर्व बाधाओ का निवारण होता है. जब भी इस प्रकार के कोई खतरे की शंका हो तब इस मंत्र का ७ बार जाप करना चाहिए. इस प्रयोग के लिए मात्र मंत्र याद होना ज़रुरी है. यह स्वयं सिद्ध है, इस लिए इस प्रयोग के लिए इस मंत्र को सिद्ध करने का विधान नहीं है. सीधा प्रयोग मे ला सकते है.

२)   इस मंत्र का एक हज़ार बार जाप कर लिया जाए तो व्यक्ति की याद शक्ति तीव्र हो जाती है तथा मेघावी बन जाता है

३)   अगर १०००० बार जप कर लिया जाए तो उसे सर्व ज्ञान अर्थात त्रिकाल ज्ञान की प्राप्ति होती है

४)   अगर इसे एक लाख जाप के अनुष्ठान के रूप मे जाप किया जाए तो व्यक्ति को खेचरत्व या भूचरत्व की प्राप्ति होती है.

साधक खुद ही अपने इच्छित प्रयोग के लिए दिनों का चयन कर सकता है की वह इतने दिन मे इतने मंत्र जाप करेगा.

सर्वेश्वरी मंत्र : ॐ हं ठ ठ ठ सैं चां ठं ठ ठ ठ ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा

यह तीव्र मंत्र है अतः कमज़ोर ह्रदय वाले साधक को इस मंत्र की साधना नहीं करनी चाहिए.
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VeerbhadraTantram is collection of various secret sadhana in itself, there are so many secrets related to the sadhana given in this secret scripture which are easy and authentic. Once upon a time this scripture used to be big literature in content but many parts of this scripture lost their existence time while. Anyway, in this scripture many sadhana related to various gods and goddesses are mentioned including rituals on Maaran, Vashikaran, Aakarshana, Mohan, Karya siddhim etc. The sadhana presented here is big gem of this scripture. This is sarveshwari sadhana. Mantra of this sadhana is swayam siddha or active this way possibility to attain success becomes more. With that there is another special characteristic is that person is free to choose their sadhana order and can have the desired result. This way, in tantra field, this sadhana is very important and secret.
To accomplish this sadhana, sadhak should select the place where no disturbance occurs during sadhana time. Sadhak should start this prayog on Tuesday night. Rosary should be rudraksha and cloth and aasana should be Red. Direction should be north. Sadhak can use this mantra in following way. Description given in regard of mantra is this way:
Just by remembering this mantra solution of the troubles could be gain related to bhoot, rakshas, (evil spirits) daakini, yogini. Whenever such auspicious troubles are marked, one should chant this mantra 7 times. For this prayoga, one should remember this mantra. As this mantra is swayam siddha, for this particular there is no need of any process to accomplish this. One can directly take the mantra in use.
If this mantra is chanted for one thousand times, person gets extreme memory power and becomes brilliant.
If this mantra is chanted 10,000 times one gets power to know everything means past and future incident could be seen.
If one does this mantra chanting for 1, 00,000 times in the form of anusthan one can have power of khechari or bhoochari means (flying in the sky or walking power for longer distance).
Sadhak can himself select the prayog and schedule could be arranged accordingly that these much of mantra chanting would be done in these much days.
Sarveshwari Mantra : Om Ham th th th seim chaam tham th th th hrah hraum hraum hreim ksheim kshom ksheim   ksham hraum hraum ksheim hreeng smaam dhmaam streem sarveshwari hum phat swaahaa  
This is tivra mantra so sadhak with fear in heart should not attempt this mantra sadhana.
   


                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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