Tuesday, November 10, 2015

महानिशा की अद्भुत साधना

          पुरुषार्थ प्राप्ति गुह्यकाली साधना:






दस महाविद्या में प्रथम स्थान रखने वाली महाविद्या भगवती काली, आदि शक्ति का अति तीक्ष्ण और तेजस्वी स्वरुप है, जहाँ ये शमशान वासिनी होकर तंत्र की पूर्णता हैं, वहीँ दूसरी ओर अपने साधक को  पूर्ण अभयता, धन धान्य, सुख सम्रद्धि, वैभव उच्चता आदि प्रदायक है, महाकाली के अनेकानेक प्रयोग प्रचलित हैं, किन्तु माँ के गुह्य काली स्वरुप की ये साधना अति विशिष्ट और अति तीव्र और त्वरित फलदायी है | मैं इस स्वरुप के बारे में और कई तरह के विवरण देना चाहती हूँ किन्तु समयाभाव की वजह से अब मूल साधना पर आते हैं सबसे पहले ------

पूजन-विधि- और सामग्री –
माँ का पारद विग्रह, या जो भी आपके पास हो, और एक भोजपत्र जिस पर यंत्र का लेखन किया जाना है, सिन्दूर, एक नारियल सूखा गोला, लाल जवां पुष्प,( जासवन) के फूल, एक अनार, नैवेद्ध में खीर सरसों के तेल का दीपक जो पूरी रात जलना है | एक काली हक़ीक माला या रुद्राक्ष माला लाल आसन, लाल वस्त्र, दक्षिण दिशा |



विधि-
 सर्वप्रथम अमावस्या की रात १२: ३० बजे स्नानादि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुहं कर बैठ जाएँ और पवित्रीकरण आदि कर भोज पात्र पर उपरोक्त यंत्र का निमार्ण अष्टगंध से करें, और इस यंत्र को विग्रह के सामने स्थापित कर लें तथा पूजन करें, अपने बाएँ ओर सिन्दूर से चतुष्कोण का निर्माण कर अर्घ्य पात्र का स्थापन करें, अब यहाँ शायद प्रश्न आयेंगे, किन्तु जो वाम पंथ के साधक हैं वे जानते हैं, और दरअसल ये साधना वाममर्गीय है, किन्तु वर्तमान में लोगों की समस्याओं से सम्बंधित ये अचूक साधना है, इसे वामपंथी चक्रपूजन में ही संपन्न करें ,
  बाकि अन्य लोगों के लिए एक पञ्च पात्र में जल में चन्दन या अष्टगंध चावल फूल और दुर्बा डालकर आदि डालकर उस चतुष्कोण पर निम्न मन्त्र से स्थापित करें,

ॐऽऽम ह: सामान्यार्घ्य स्थापयामि
 (auSSSSm hah saamaanyaarghya sthaapayaami) ,
अब इसमें मध्यमा अंगुली डालकर, यानि सूर्य मंडल अंकुश मुद्रा के द्वारा तीर्थों का आवाहन करें |

ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती |
Aum gange cha yamune chaiv Godavari sarasvati .
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन्सनिधं कुरु ||
Narmade sindhu kaaveree jalesminsanidham  kuru. 
ॐ ब्रहमांडोदर तीर्थानि करै:स्फ्रुष्ट नितेरंवै |
Aum brahmaandodar teerthaani karaihsfrusht niteramvai.
तेन सत्ये नमे देवतार्थोन्दोहम दिवाकर ||
Ten satye name devaarthondoham divaakar.
ॐ गंगादि सफल तीर्थेभ्यो नमः |
Aum gangaadi safal teerthebhyo namah.


अब निम्न मन्त्र के उच्चारण करते हुए कला पूजन करें—

ॐ अर्कमंडलाय द्वादश कलात्मने नमः |
ॐ वन्हीमंडलाय दस कलात्मने नमः |
ॐ सोममंडलाय षोडस कलात्मने नमः
Aum arkmandalaay dwaadash kalaatmane namah.
Aum vanheemandalaay das kalaatmane namah.
Aum somamandalaay shodas kalaatmane namah.

इन मंत्रो से सूर्य,अग्नि, तथा चन्द्र मंडल का पूजन करें, यहाँ मंडल नहीं बनाना है अपितु यंत्र पर ही इनका पूजन करना है,
अब ऋष्यादिन्यास करें-

शिरसि भैरवाय ऋषिये नमः
Shirasi bhairavaay rishaye namah
मुखे उष्णिक छन्दसे नमः
Mukhe ushnik chandase namah.
हृदये ॐऽऽम गुह्ये कालिके नमः
 Hridaye aum guhye kaalike namah
गुह्य क्रीम बीजाय नमः
Guhya kreem beejaay namah
पादयो हूँ शक्तये नमः
Paadayo hoom shaktaye namah.
सर्वांग क्रीं कीलकाय नमः  
Sarvaang kreem keelakaay namah.

अब षडंग न्यास करें-
 क्रां हृदयाय नमः
Kraam hridayaaya namah.
 क्रीं शिरसे स्वाहा
Kreem shirase swaahaa.
 क्रूं शिखाये वषट्
Kroom shikhaaye vashat.
 क्रें कवचाय हुम
Krem kavachaay hum
क्रों नेत्र त्र्याय वौषट
Krom netratrayaay vausht.
क्र: अस्त्राय फट् |
Kram astray fat.
निम्नानुसार कर न्यास—
क्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः
Kraam angushthaabhyaam namah.
क्रीं तर्जनीभ्यां नमः
Kreem tarjaneebhyaam namah.
क्रूं मध्यमाभ्यां नमः
Kroom madhyamaabhyaam namah.
क्रें अनामिकाभ्यां नमः
Krem anaamikaabhyaam namah.
क्र: करतलकर प्रष्ठाभ्याम नमः
Krah karatalakar prashthaabhyaam namah.

इस प्रकार चार, आठ, और सोलह बार मूल मन्त्र का जप करते हुए प्राणायाम करते हुए, माँ काली का ध्यान करें,  फिर आवाहन करें |

‘भीमा भामोग्र द्रष्टांजन गिरीविल्स्तुल्य काँति दशास्य |
त्रिशंगलोलाक्षी माला दस्लुलित भुजा पंक्ति पदांसथैव ||
शूलम बाणं गदां वै धनुरथिम, शंख चक्रे भुशुण्डी |
वन्दे काली कराग्रे पर धमसी युता तामसी शीर्ष कंज’||

योनी मुद्रा प्रदर्शित करते हुए आवाहन करें |
अब जो नारियल गोला है उसे सिन्दूर में घीं डाल कर गीला कर उस गोले को पूरा रंग दें और सामने ही बाजोट पर चावलों की ढेरी बना कर उस पर स्थापित करें और उसे भैरव प्रतीक मानकर उसका पूजन करे, और उन्हें गुड का भोग लगाकर प्रणाम करें, तथा माता की साधना हेतु अनुमति प्राप्त करें |
अब संकल्प लें की आप धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हेतु या जीवन के समस्त कष्टों के निवारण हेतु या जो भी आप चाहें ले सकते हैं |
एवं निम्न मन्त्र की ५१ माला मन्त्र जप पूर्ण एकाग्रता से करें 

मन्त्र
हूं ह्रीं गुह्ये कालिके क्रीं क्रीं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा
Hum hreem guhye kalike kreem kreem hum hreem hreem swaha |

मन्त्र जप के बाद जप समर्पण करें और दुबारा ध्यान करें, तथा योनिमुद्रा से प्रणाम कर साधना पूर्ण करें
आप साधना करें और फल के तीक्षण प्रभाव को स्वयम अनुभूत करें | गुरुदेव आपकी साधना सफल करें इन्ही शुभेक्षाओं के साथ----

निखिल प्रणाम

रजनी निखिल

N P R U


Sunday, November 8, 2015

दीपावली के दुर्लभ प्रयोग







दीपावली के दुर्लभ २ प्रयोग-

जय सदगुरुदेव, /\

स्नेही भाइयो बहनों !

दिवाली, यूँ तो आप सब के लिए विशेष पर्व है खुशियों से भरा हुआ मौज मस्ती युक्त और एक दुसरे से मिलने और गिले शिकवे दूर करने का माना जाता है, जैसे कि हम सब आज तक देखते चले आ रहें है, किन्तु साधक के लिए ये महानिशा क्या महत्व रखती है ये सिर्फ एक साधक ही जानता है |

अभी कुछ वर्षों में एक विशेस परिवर्तन ये हुआ है की अधिकाँश लोग समय विशेस के महत्व को समझते हुए इन महत्वपूर्ण दिवस को सार्थक बनाने का प्रयास करते हैं, और इसी प्रयास को  पूर्ण सफलता प्राप्त हो, ये हमारा प्रयास है, और हमारे ‘निखिल- एल्केमी’ ग्रुप का मुख्य उद्देश्य |

जिसे मै अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूरा करने का प्रयास करती हूँ, कितनी सफल हूँ ये सिर्फ आप ही बता सकते हैं, मै अपना कार्य पूरी निष्ठा से और इमानदारी से करती हूँ, और यही अपेक्षा आप सब से करती हूँ कि आप सब भी उसी निष्ठां से इन साधनाओं आत्मसात कर अपने जीवन की कमियों को दूर कर अपने जीवन सहज और सफल बनायें |

  सम्पूर्ण जीवन का आधार है लक्ष्मी, लक्ष्मी यानि सम्पन्नता |
जीवन को सफल तब माना जाता है, जबकि व्यक्ति धन और ऐश्वर्य से पूर्ण हों | महालक्ष्मी अपने आप में ही संसार की आधारभूता हैं | अतः जहाँ महाकाली और माँ सरस्वती की साधना जीवन को निष्कंटक और सफल बनाती है, वहीँ भगवती लक्ष्मी सम्मान दिलाती है |

अतः प्रथम आवश्यकता है और इसकी प्राप्ति सिर्फ मेहनत से प्राप्त नहीं हो सकती क्योंकि अगर ऐंसा होता तो पत्थर तोड़ने वाला सबसे बड़ा धनवान होता और दूसरा हमारा प्रारब्ध जिसमें पूर्व निर्धारित होता है कि आप के जीवन का शौभाग्य कब उदित होगा या आप जन्म से ही धनाड्य परिवार से सम्बंधित होते हैं, किन्तु कभी-कभी जन्म से धनाड्य जीवन के एक पड़ाव पर कंगाल भी हो जाया करते हैं या जन्म से कंगाल व्यक्ति अचानक संपन्न | इसी को पूर्व प्रारब्ध कहा जाता है |

किन्तु अब प्रश्न ये है कि, यदि जीवन में दरिद्रता है, कर्ज हैं, दुःख है, तो कैसे कौन सी साधना, मन्त्र उपयोग करें ?
क्योंकि मन्त्र और साधना तो लाखों करोड़ों हैं, अनेकानेक विधान, तांत्रिक, मान्त्रिक, साबरी वैदिक आदि-आदि | तो क्यों सबका प्रयोग करें जो कि संभव ही नहीं | ऐंसे ही समय में हमारा मार्गदर्शन गुरु के द्वारा होता है, ऐंसे ही समय में वे हमें निर्देशत करते हैं कि हमारे लिए क्या उपयुक्त होगा ?

सदगुरुदेव ने उन हजारों लाखों मन्त्रों में से उन मन्त्रों को चुना जो जन सामान्य के उपयुक्त थे जिसे कोई साधक या सामान्य व्यक्ति कर सकता है और लाभ ले सकता है |
उन्ही मोतियों में कुछ  मोती आपके लिए इस दिवाली पर्व उपहार स्वरुप---- J

हो सकता है इनमें के सारे प्रयोग आपके पास हों या न हों किन्तु मेरे अनुभवजन्य प्रयोग हैं, और मै आज भी इसका लाभ ले रही हूँ, आप भी इसे संपन्न करें और लाभ उठायें ---


गुरु गोरखनाथ प्रदत्त प्रयोग......

महा विजय पताका प्रयोग—

इस प्रयोग को वर्ष में चार बार कर सकते हैं गुरु गोरखनाथ के अनुसार, अक्षय-तृतीया, धनत्रयोदशी से दीपावली तक, होली और किसी भी ग्रहण काल में |
साधना सामग्री एक पीले रंग की ध्वजा या झंडा, ८१ गोमती चक्र, और सफ़ेद हकिक माला जो ८१ दानों की ही होगी,और एक हाथ लम्बा और चौड़ा सफ़ेद कपडा | इन सबको आप पहले ही तैयार यानि उपलब्ध कर लें साथ ही कुमकुम या त्रिगंध |

विधान—
धनत्रयोदशी की सुबह पीले झंडे पर कुमकुम या त्रिगंध से श्री लिखें और उसे छत पर या कहीं पर भी ऐंसी जगह लटका दें जहाँ पर वह हवा से लहराता रहे |

अब दोपहर ठीक बारह बजे इस साधना को प्रारम्भ करना है, प्रथम सफ़ेद कपडे को एक बड़े पट्टे पर बिछा दें, और उस पर कुमकुम या त्रिगंध से १० लाइन आड़ी और १० लाइन सीधी खींचें इस प्रकार से ८१ कोष्ठक बन जायेंगे अब इन कोष्ठक में एक-एक गोमती चक्र स्थापित कर दें | अब चारो कोनों पर चावल की चार देरी बनायें और उस पर घीं में गुड मिलाकर भैरव को भोग लगायें और उनसे प्रार्थना करें कि साधना में सफलता निर्विघ्न प्राप्त हो, अब उन सभी गोमती चक्र की पूजा कुमकुम पुष्प आदि से करें सामने तेल, जो किसी भी प्रकार का हो सकता है, का दीपक प्रज्वलित करें, तथा गुरु अनुमति प्राप्त करें कि, इस साधना से हमरे जीवन के सभी दूर हों तथा चहुँ ओर से स्वर्ण वर्षा हो यानि धन आगमन के स्रोत खुलें, धन की किसी भी प्रकार की कमी न हों, तथा व्यापार में सदैव वृद्धि होती रहे |इस मनोकामना के साथ इस साबर मन्त्र की १ माला  मन्त्र जप संपन्न करें---


मन्त्र—
दमे खुदा मीर उस्ताद इष्ट कुलू नाग बंदन सर किरारी ईसर चोट की, किसर वंदन हमारा तनी जितनी काले अमना संभाल अबे तनातर माठू महले फरके सत चल बंदन चला बंदन मुरे बंदन लक्ष्मी बंदन ता बंदन अधूर कुन कुनी अली शाह समंदर की दूर मदूर काल कलावे जंजीर गुरु गोरखनाथ मछन्दर की दुहाई मेरी रक्षा करो, इक्कीस वीर भाई शब्द साचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ||  

Dame khudaa meer ustaad esht kuloo naag bandan sar kiraaree eesar chot kee, keesar vandan hamaaraa tanee jitnee kaale amanaa sambhaal abe tanaatar maathoo mahale farke sat chal bandan chalaa bandan mure bandan lakshmee bandan taa bandan adhoor kun kunee alee shaash samandar kee door madoor kaal kalaave janjeer guru gorakhnaath machandar kee duhaaee mari rakshaa karo, ikkees veer bhaaee shabd saachaa pind kaachaa furo mantr eeshwaro vaachaa .   

मन्त्र जप के बाद उठकर स्नान कर लें, और बाकी सभी कुछ वैसे ही रहने दें | इस प्रयोग को आप इन पांच दिनों में, किन्ही भी तीन दिन सम्पन्न कर सकते हैं आप चाहें तो धनत्रयोदशी से अमावश्या तक या अमावश्या से द्वितीय तक भी कर सकते हैं जप समाप्ति के बाद गोमती चक्र को उसी सफ़ेद वस्त्र में पोटली बाँध कर किसी स्थान पर रख दें एवं ध्वजा को पूर्णिमा तक ऐंसे ही बंधी रहने दें |
इस प्रयोग के बाद कर्ज में डूबे व्यक्ति भी उन्नति करते देखे गए हैं, वर्षों से प्रयासरत व्यक्ति को रोजगार मिला है चूँकि साबर प्रयोग असफलता का तो प्रश्न ही नहीं है |

एक बात बार बार कहती हूँ व हमेशा कहती रहूंगी की साधना की सफलता मूलतः साधक की मन के भाव श्रद्धा पर निर्भर करती जितनी सिद्धत से आप साधना संपन्न करेंगे उसी अनुरूप आपको सफलता भी प्राप्त होगी |

प्रयोग सम्पन्न करें और प्रत्यक्ष परिणाम प्राप्त करें J

 स्नेही स्वजन ! अक्सर लोग दिवाली की रात में लक्ष्मीजी  का पूजन करते है, या उससे ही सम्बंधित कोई अन्य प्रयोग, किन्तु इस बार इस महा निशा में आप उस दिन की उत्पन्न महाविद्धया की साधना करेंगे अर्थात महाकाली साधना | जो जीवन में अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष यानी चारो पुरुषार्थों को देने वाली है इस साधना के माध्यम से आप अपने जीवन को  निष्कंटक कर पूर्ण सुख सम्रद्धि से आनंद युक्त जीवन बना सकते हैं | क्रमशः---  

NIKHIL PRANAM

RAJNI NIKHIL

***NPRU***








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Sunday, October 11, 2015

गुरु सायुज्य त्रिशक्ति साधना

          
       



         गुरु सायुज्य त्रिशक्ति-साधना



जय सदगुरुदेव /\
      स्नेही आत्मीय भाइयो बहनों !

शरद्काले   महापूजा   क्रियते या  च  वार्षिकी,
तस्यां ममैतान्माहात्म्याँ श्रुत्वा भक्ति-समन्वितम ||

सर्व बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतन्वितः 
मनुष्यो मत्प्रसादेन  भविष्यति न संशय: ||

अर्थात शरद ऋतू की इस नवरात्री के पूजन का महत्व अति विशिष्ट है इस महापूजा, आराधना से साधक सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य और सम्रद्धि से परिपूर्ण हो जाता है, मानव जीवन को उज्जवल करने वाली इस महासाधना के सम्बन्ध में कोई संशय नहीं |
भाइयो बहनों !  बीच के बहुत से विशेस दिन आपके छूट गएँ होंगे या आपने कुछ और किया होगा, कोई बात नहीं अब हम सब मिलकर इन विशेस दिवस की विशष्ट साधना सम्पन्न करेंगे |

नवरात्री अपने आप में चैतन्य और जाग्रत दिवस होती है और भगवती के साक्षात्कार का सबसे सुन्दर अवसर, इन दिनों यदि साधक दृढ़ विश्वास के साथ इस महाशक्ति की साधना संपन्न करे तो निश्चित ही माँ से साक्षात्कार होने की संभावना बनती है और कृपा प्राप्त होती ही  है | इस साधना में संलग्न होने से पहले गुरु आज्ञा और और उनकी कृपा अति आवश्यक अतः प्रत्येक साधक को अपने गुरु से अनुमति लेकर या उनके सानिध्य में ये साधना सम्पन्न करें तो अति उत्तम या अपने साधना काल में गुरुदेव का तंत्रोक्त पूजन प्रति दिन किया जाना चाहिए या कम से कम पहले और आखिरी दिन तो अति आवश्यक है
 है ना विशिष्ट विधान.... क्योंकि शक्ति के साथ गुरु के पूजन का विधान भी तो है ना J गुरु जो शिव स्वरुप हैं, और शक्ति, उर्जा- अर्थात शिव और शक्ति यानि गुरु की उर्जा प्राप्त करने की साधना है ये, जो साधक या व्यक्ति इस साधना को न कर पायें वे इस महा पूजा को अवश्य संपन्न करें, तो भी आप इस उर्जा को महसूस कर सकते हैं और मनइक्षित फल प्राप्त कर सकते हैं |

इस महा दिवस साधना के विशिष्ट नियम—
१-ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया के बाद प्रथम दिवस स्थापना और तंत्रोक्त गुरु पूजन सम्पन्न करें |
२- ब्रहमचर्य का दृढ़ता से पालन करें, शारीरिक शुद्धि के साथ मन और विचारों की शुद्धि भी आवश्यक है |
३- अनावश्यक वार्तालाप में अपनी उर्जा शक्ति को नष्ट न करें, अतः अधिकाधिक मौन रखने का प्रयास अवश्य करें |
4- सात्विक भोजन, यदि वृत न रख सकें तो एक समय भोजन करें .
      एक विशेस बात उन व्यक्तियों के लिए जो साधना कर सकें, और व्यापार और नौकरीपेशा हैं, वे भी इस महापूजा को सम्पन्न कर सकते हैं, सुबह और शाम का एक टाइम निश्चित का पूजा और लघु मन्त्र जप कर भी इस साधना का लाभ उठा सकते हैं |

उपयुक्त साधना सामग्री-
माँ भगवती का एक सुंदर चित्र, यदि तीनों स्वरुप यानि महालक्ष्मी-महासरस्वती और महाकाली का चित्र मिल जाए तो अति उत्तम | लघु नारियल, आठ सिद्धि फल, यदि आपके पास श्री यंत्र  और दक्षिणावर्ती शंख है तो,  इन्हें भी स्थापित करना है, या दुर्गा यंत्र, महाकाली यंत्र, और एक महासरस्वती, या सरस्वती यंत्र, ये सब श्री यंत्र की अनुपस्तिथि में, और एक रुद्राक्ष माला एक काली हक़ीक माला, और एक कमल गटटे की माला, एक ताम्बे का सर्प, और शुकर दन्त भी हो जाये तो समस्त साधना सामग्री पूरी हो जाएगी, यदि नहीं भी है तो कोई बात नहीं किन्तु आपमें से अनेक भाइयों के पास ये उपलब्ध हो सकता है |
एक विशेस बात जिन लोगो के पास ये सामग्री नहीं है वे बिलकुल निराश न हों वे पूजा की दुकान पर जो भी चीजें प्राप्त हों जाएँ उनसे भी साधना कर सकते हैं |

| शुद्ध घी का दीपक जो पूरे नौ दिन अखंड जलेगा, अगरबत्ती एक बड़ा ताम्बे का पात्र जिसमें कलश स्थापन होगा पुष्प, अक्षत, पंचपात्र, शुद्ध घीं, दूध, दहीं, शहद, शक्कर,सिन्दूर, कुमकुम, गंगा जल, केशर, रक्त चन्दन, नारियल, सुपारी, फल, सिंगार सामग्री इत्यादि, जो पूजन की दूकान पर आसानी से प्राप्त हो जाया करती है, नैवैद्ध, इसमें आप प्रति दिन खीर या हलुए का भोग लगा सकते हैं | 
 इस साधना में प्रत्येक उपकरण एवं सामग्री की आवश्यकता महत्वपूर्ण है अतः पहले ही इनकी व्यवस्था कर ली जाये तो साधना के समय निश्चिन्तता रहती है और आप बिना किसी संसय के साधना में पूरे मन से संलग्न रहते हैं साधना में जहाँ शरीर की शुद्धि आवश्यक है वहीं मन एवं आत्म शुद्धि भी अति आवश्यक है अतः प्रत्येक बात का ध्यान रखा जाये तो साधना के सफलता में कोई संदेह नहीं होता है |

पूजा विधान-
इस साधना में प्रथम दिवस माँ दुर्गा की स्थापना, गुरु पूजन, कलश स्थापन आदि का विधान है, एवं छः दिवस के अलग विधान हैं जो कि दो-दो दिनों में विभाजित हैं अष्टमी को हवं एवं नवमी को विसर्जन का प्रावधान है तो विधान अति सरल भी हो जाता है |
प्रतिपदा पूजा एवं स्थापन- प्रथम दिवस साधक प्रातः ब्रहम मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें पीला ही आसन होगा, साधना स्थान पर अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर मा दुर्गा का चित्र स्थापित करें,
उनके सामने बीच में दुर्गा यंत्र स्थापित करें | अपने बायीं और भूमि पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाकर कलश स्थापित करें, अपने दांयी और एक बड़ा शुद्ध घीं का दीपक स्थापित करें | अब पटटे पर ही गणपतिजी की स्थापना करें यदि गणपति प्रतिमा न हों तो एक सुपारी में कलावा लपेटकर चावल की ढेरी पर गणेश की स्थापना करें अब कलश और गणपति जी का पूजन कर साधना की पूर्ण सफलता एवं निर्विघ्नता की प्रार्थना करें, अब दायें हाथ में जल अक्षत फूल सुपारी दूर्वा आदि लेकर संकल्प लें—

ॐ अद्धयेत्यादी मम शारदियार्चन निमित्यार्थे घट स्थापन-कर्माहं करिष्ये
“Om addhyetyaadi mam shardiyaarchan nimityarthe ghat sthapan karmaham karishye”

           और जल भूमि पर छोड़ दें अब गणपतिजी का पूजन करें | इस दिन की स्थापना के बाद किसी भी विग्रह को बार बार हटाना, या हिलाना नहीं है,इनकी पूजा कर,आवाहन करें, इनके सामने दूब चावल पुष्प, और कुमकुम अर्पित करें |
अब मुख्य पूजा प्रारंभ होती है अपने दांयी और अपने गुरु के चित्र का स्थापन करें एवं उनका तंत्रोक्त पूजन करें--  
इस पूजन में तंत्रोक्त गुरु पूजन का महत्व अत्यधिक है क्योंकि जो साधना में पूर्णता चाहते हैं, सही अर्थों सिद्ध योगी बनने की इक्छा रखते हैं, जो सम्पूर्ण प्रकृति को यानि आदि शक्ति को अपने अनुकूल बनाने की भावना रखते हैं, और तंत्र मार्ग में प्रवेश चाहते हैं या तंत्र मार्ग पर बढन चाहते हैं, उनके लिए गुरु की तांत्रोक्त साधना या पूजन अति आवश्यक है चूँकि शक्ति का आवाहन है ये विधान अतः इस पूजन की प्रधानता है | 

अब मुख्य दीपक प्रज्वलित करें उसका पूजन करें औरहाथ में पुष्प लेकर  माँ दुर्गा का आवाहन करें—

ॐ आगच्छ वरदे देवी दैत्य दर्प निसूद्नी,
पूजां ग्रहांण  सुमुखि त्रिपुरे  शंकरप्रिये ||
“Om aagachchh varde devi daitya darp nisoodni,
Poojaam grahaan sumukhi tripure shankarpriye” |

 इसके बाद दुर्गा चित्र और यंत्र की पूजा पीले वस्त्र, पीला यज्ञोपवीत, चन्दन, चावल पुष्प धुप दीप नैवेद्ध सुपारी लॉन्ग इलायची पान आदि अर्पित कर संपन्न करें एवं हकीक माला से निम्न मन्त्र ११ माला करें |

मन्त्र-
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः
“Om dum durgayai namah”

इसके बाद गुरुदेव को जप समर्पण कर जल आसन के नीचे छोड़कर उअथ सकते हैं, यदि आप चाहें और समय हो तो दुर्गा सप्तशती का पाठ करें या कवच, अर्गला, कीलक और कुंजिका स्तोत्र संपन्न कर फिर जप समर्पण करें | दिन में आप अपने अन्य कार्य कर सकते हैं |
अब आगे के सरे पूजन रात्रि कालीन होंगे एवं दिन में गुरु पूजन और सप्तशती आदि कर सकते हैं |


द्वतीया एवं तृतीया पूजन—
 इस दिन आपको लाल वस्त्र और लाल ही आसन उपयोग करना है
महालक्ष्मी पूजन- आवश्यक सामग्री-- श्रीयंत्र एवं शंख यदि किसी के पास शंख न भी हो तो श्री यंत्र का भी पूजन कर सकते हैं | इसके लिए थोड़े कुमकुम से रंगे चावल और पुष्प पंखुडियां पहले से रख लें |
अब भगवती दुर्गा के महालक्ष्मी स्वरुप का ध्यान करें---

“अरुणकमलसंस्था  तद्रज:  पुन्जवर्णा,
करकमल घ्रतेश्वा भितियुग्माम्बुजा च |
मणिकटक    विचित्रालंक्रताकत्मजालैः,
सकल भुवनमाता सन्वतम श्री: श्रियै नमः”||
“Urunkamalsanstha  tadrajah           punjavarna,
Karkamal  ghrateshwa bhitiyugmaambuja cha |
Manikatak             vichitraalankritakatmajaalaih,
Sakal  bhuvanmata sanvatam shreeh shriyae namah”||

   ध्यान सम्पन्न कर महालक्ष्मी की स्थापना कर कुमकुम, चावल, पुष्प केशर, धुप दीप नैवैद्ध,पान, सुपारी लौंग, इलाइची आदि से पूजन करें और कमल-गट्टे की माला से निम्न मन्त्र की ११ माला मन्त्र जप करें |

मन्त्र-
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” |
“Om shreem hreem kleem shreem  mahalakshamyainamah” |
मन्त्र जप के बाद जो पुष्प पंखुडियां और कुमकुम रंगे चावल हैं उनसे श्री सूक्त के सोलह श्लोक के पाठ करते हुए अक्षत और पुष्प श्री यंत्र और शंख पर चढाते जाएँ |
यही क्रम द्वितीय को भी दोहराएँ | एवं इस दूसरे दिन की पूजा के पश्चात् आरती अवश्य सम्पन्न करें |


चतुर्थी और पंचमी का पूजन—

ये दोनों दिवस माँ दुर्गा की दूसरी महा शक्ति महासरस्वती के हैं | ये साधना अति आवश्यक है क्योंकि महा सरस्वती तत्व गुण प्रधान शक्ति हैं इनसे ही विचार, विवेक, बुद्धि, ज्ञान विज्ञान आदि की श्रोत हैं इनसे ही साधक में कार्य-शक्ति, इच्छा-शक्ति, और ज्ञान शक्ति का श्रोत खुलता है अतः भगवती के इस स्वरुप की साधना अवश्यक है |
इस दिन गणपति पूजन कर सरस्वती यंत्र की स्थापना करें व इनका पूजन अष्टगंध,श्वेत पुष्प, दूध, सुपारी, से करे |
अब देवी का ध्यान करें |

ऐमम्बितमे नदीतमे   देविममे    सरस्वति |
अप्रशस्त इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृघि ||
“Emambike   naditame   devimame    sarswati |
Aprashast eva smasmi prashastimamba naskrghi” ||

अब दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें |
अपने सामने अब यंत्र स्थापित कर चन्दन से सामने ‘ह्रीं’ लिखें व सरस्वति चित्र भी स्थापित करें | तदोपरांत अष्ट सिद्धिफल लेकर सरस्वती के आठ स्वरूपों का ध्यान करते अपने सामने यंत्र के आगे एक पंक्ति में स्थापित करें, पहले एक सिद्धिफल लेकर देवी के निम्न स्वरूपों का उच्चारण करते हुए क्रमशः स्थापित करें |

वाग्वादिनी स्वाहा |  (vagvadini  swaha)
चित्रेश्वरी स्वाहा |   (chitreshwari swaha)
एं कुलजे स्वाहा |   (eng kulje swaha)
अन्तरिक्ष सरस्वति स्वाहा |   (antriksha sarswati swaha)
घट सरस्वति स्वाहा |   (ghat sarswati swaha)
नील सरस्वती स्वाहा |  (neel sarswati swaha)
किणि किणि सरस्वति स्वाहा|  (kini kini saeswati swaha)
कीर्तीश्वरि सरस्वति स्वाहा |   keertishwari sarswati swaha)

इस प्रकार इन आठ सरस्वति की स्थापना करें व प्रत्येक के सामने एक-एक सुपारी तथा पुष्प अर्पित करें |
अब अपने आसन पर ही खड़े होकर ग्यारह बार प्रदक्षिणा करें फिर सरस्वती बीज मन्त्र की ग्यारह माला जप करें |

“ॐ ह्रीं एंग ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”
“Om hreem eng hreem om sarswatyai namah”

 यहाँ ध्यान रखें की ग्यारह माला करना आवश्यक है व ग्यारह माला जप होने के पश्चात ही आसन छोड़ें|
सायंकाल में १ पाठ दुर्गा सप्तशती का संपन्न करें व पांचवे दिन भी यही क्रम रहेगा |


षष्ठी-सप्तमी पूजा विधान--  

यह दोनों दिन दुर्गा के तीसरे महास्वरूप, महाकाली का होता है | इन दो दिनों में माँ महाकाली अपने प्रचंड रूप में विद्यमान रहती हैं व साधकों को पूर्ण आशीर्वाद, सामर्थ्य, रक्षा, व शक्ति प्रदान करती हैं |
षष्ठी के दिन प्रातः दैनिक पूजन में गणपति पूजन, गुरु पूजन, एवं दुर्गा पाठ सामान्य रूप से ही करें व काली पूजन रात्री में संपन्न करें |
इस पूजन में लाल वस्त्र धारण करने हेतु, इसके अतिरिक्त रक्त चन्दन, लाल पुष्प, ताम्र पात्र, ताम्बे का छोटा सर्प, महाकाली यंत्र आवश्यक है | रात्री का प्रथम प्रहर  के बाद (१० से ११ के बीच) होने के पश्चात पूजन आरम्भ करें | गुरु चरणों में ध्यान कर महाकाली की स्तुति करें |
अब यंत्र को ताम्र पात्र में रख कर सर्वप्रथम घी से स्नान करायें फिर दुग्ध धारा से फिर अंत में जल धारा से स्नान करा कर साफ़ कपडे से पोंछ कर “ॐ ह्रीं कालिकायोगपीठात्मने नमः” बोल कर पूष्प आसन पर स्थापित कर रक्त चन्दन यंत्र पर लगायें तथा पुष्प अर्पित करें |अब प्रत्येक दिशा में काली का ध्यान कर एक-एक पुष्प अवश्य फेंके  
इसके पश्चात साधक काली बीज मन्त्र की पांच माला जप करे, पहली चार माला नमस्कार मुद्रा में तथा आखिरी माला मुट्ठि बाँध कर शौर्य मुद्रा में संपन्न करें | माला करते समय कदापि विचलित ना हों |

बीज मन्त्र-
|| ॐ क्रीं कालिके स्वाहा ||
 “Om kreem kaalike swaha”

तदोपरांत माँ महाकाली की आरती कपूर से संपन्न करें तथा यंत्र को पूजा स्थान में एक जगह स्थापित कर दें |


अष्टमी

यज्ञकी अग्नि प्रज्वलित कर, सभी देवी देवताओं का ध्यान करें, गुरु मन्त्र की १०8  आहुतियाँ घीं से दे, तदोपरांत नवार्ण मन्त्र का जप करते हुए तिल और जौ की घी के साथ १०००, या ५०० या १०८ आहुतियाँ दें | इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के प्रत्येक मन्त्र का जप करते हुए, प्रत्येक मन्त्र के अंत में स्वाहा बोल कर आहुति दें, आहुति के समय यग्य कुंड में सामग्री को समर्पण भाव से अर्पित करें |
इसके पश्चात यज्ञ स्थान में ही दुर्गा की आरती संपन्न करें, ग्यारह दीपक वाली आरती श्रेष्ठ मानी गयी है


नवमी विधान-  

नवमी का दिन केवल समर्पण दिवस है, इस दिन सभी शोक, दुःख, पीड़ा समर्पित करें | इस हेतु साधक स्नान कर, पीले वस्त्र धारण कर नवार्ण मन्त्र का  तीन माला जप करें तथा पूरे आठ दिन में जो भी सामग्री, यंत्र तथा माला को छोड़ कर बाकी सभी को किसी भी श्रेष्ठ नदी, सरोवर अथवा पीपल के वृक्ष के नीचे समर्पित करें |इस दिन १, ३,५,७,या ९ जो भी संभव है कन्या को भोजन करायें व परिवार के बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें   
नवार्ण मन्त्र-

| “ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै” ||
 eng hreeng kleeng chaamundaayai vicchai

ये साधना पूर्ण विधान से संपन्न करने से साधक को अपने अभीष्ट की प्राप्ति होती ही है, और इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है, सदगुरुदेव प्रदत्त इस साधना को सम्पन्न करें और इसके श्रेष्ठ फल को स्वयं अनुभव करें क्योंकि जब तक हम स्वयम किसी कार्य या क्रिया करें नहीं उसके बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं --- 

****RAJNI NIKHIL****
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